Nibandhon ki duniya/Sanskriti kya hai? tatha anya nibandh: Ramdhari Singh 'Dinkar' (Record no. 356512)

MARC details
000 -LEADER
fixed length control field 04795nam a22001817a 4500
003 - CONTROL NUMBER IDENTIFIER
control field OSt
005 - DATE AND TIME OF LATEST TRANSACTION
control field 20240909083523.0
020 ## - INTERNATIONAL STANDARD BOOK NUMBER
International Standard Book Number 9789357753852
082 ## - DEWEY DECIMAL CLASSIFICATION NUMBER
Classification number JP 891.434 SIN
100 ## - MAIN ENTRY--PERSONAL NAME
Personal name Singh, Arvind Kumar
9 (RLIN) 5412
245 ## - TITLE STATEMENT
Title Nibandhon ki duniya/Sanskriti kya hai? tatha anya nibandh: Ramdhari Singh 'Dinkar'
260 ## - PUBLICATION, DISTRIBUTION, ETC.
Place of publication, distribution, etc. New Delhi
Name of publisher, distributor, etc. Vani
Date of publication, distribution, etc. 2024
300 ## - PHYSICAL DESCRIPTION
Extent 402p.
520 ## - SUMMARY, ETC.
Summary, etc. दिनकर अपने युग के प्रथम पांक्तेय विभूतियों में रहे, उनके साहित्य में हमारा पारम्परिक दर्शन और विचारधारा तथा पाश्चात्य चिन्तकों की सोच, दोनों का सम्मिश्रण तो नहीं कहना चाहिए, बल्कि ज़्यादा उपयुक्त होगा कहना कि दोनों को आत्मसात् करने के पश्चात् जो रत्न नितान्त मौलिक तौर पर अभिव्यक्त होता है, वह उनके काव्य और उनके साहित्य का सौन्दर्य है।दिनकर जी यदि कवि नहीं, केवल गद्यकार ही होते तो आज उनका स्थान कहाँ होता? यह सवाल अक्सर मेरे मन में उठता है और तब मुझे लगता है कि कदाचित् उनके विराट कवि व्यक्तित्व ने उनके गद्यकार को ढक लिया है। यह निश्चित है कि पूज्य दिनकर जी यदि मात्र गद्य लेखक ही होते तब भी उनकी गणना हिन्दी के श्रेष्ठतम गद्य लेखकों में होती। किन्तु जैसे रेणुका, हुंकार, रश्मिरथी, कुरुक्षेत्र और परशुराम की प्रतीक्षा के रचयिता और रसवन्ती तथा उर्वशी के रचयिता एक ही कवि का होने के कारण रसवन्ती और उर्वशी की कोमल, मृदु और आध्यात्मिक धारा की अवहेलना हो जाती है, वैसे ही दिनकर के विराट और विशाल कवित्व के कारण उनका गद्य उपेक्षित हो गया है।दिनकर जी के गद्य में अवगाहन करने का अर्थ है, स्वयं को ज्ञान की विभिन्न धाराओं से पुष्ट करना । दिनकर जी का गद्य यदि आपने पढ़ा है तो आप निश्चयपूर्वक उस ज़मीन पर खड़े हैं, जो जितनी ठोस है, उतनी ही मुलायम, जितनी कठोर है उतनी ही मृदु । जितनी स्पष्ट है, उतनी ही वायवीय। हाँ अगर हमने दिनकर जी के गद्य साहित्य को गम्भीरता से पढ़ा है, तो भारत के साहित्यिक, सांस्कृतिक, सामाजिक और दार्शनिक वैशिष्ट्य को समझ सकते हैं, न सिर्फ़ भारतीय सन्दर्भों को बल्कि विश्व स्तर पर जो चिन्तन, जो सोच, जो दिशा निर्धारित हो रही है, प्रतिपादित हो चुकी है, वे ज्ञान के उन महत्त्वपूर्ण टापुओं पर आपको पहुँचा देंगे।कवि दिनकर तो हिन्दी साहित्य के लिए अनिवार्य हैं और इसे पढ़कर शायद आपको भाषित हो कि गद्यकार दिनकर भी शायद उतने ही आवश्यक हैं। - भूमिका से
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Literary hindi essays
9 (RLIN) 5413
650 ## - SUBJECT ADDED ENTRY--TOPICAL TERM
Topical term or geographic name entry element Jnanpith awardee- Ramdhari Singh 'Dinkar'
9 (RLIN) 5414
942 ## - ADDED ENTRY ELEMENTS (KOHA)
Koha item type Books
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