Hum Bharat Ke Log : Bhartiya Samvidhan Par Nau Nibandh

Khaitan, Tarunabh

Hum Bharat Ke Log : Bhartiya Samvidhan Par Nau Nibandh - New Delhi Vani Prakashan 2025 - 114 p.

पिछले कुछ वर्षों में कई चिन्तित नागरिकों, न्यायाधीशों, राजनेताओं, सामाजिक कार्यकर्ताओं, पत्रकारों और शिक्षाविदों ने यह दावा किया है कि भारतीय संविधान ख़तरे में है। इस परिप्रेक्ष्य में यह किताब यह समझने का प्रयास करती है कि भारतीय संविधान के मुख्य आदर्श क्या हैं और उन्हें प्राप्त करने के लिए संविधान किस तरह की संस्थाओं की स्थापना करता है? किसी भी संविधान की सुरक्षा अन्ततः उसकी जनता ही कर सकती है। अतः यह किताब सरल भाषा में संघवाद, शक्ति का विभाजन, स्वतन्त्रता, क़ानून का शासन जैसे मुद्दों पर चर्चा करती है, ताकि पाठक खुद निश्चित कर सकें कि संविधान वास्तव में ख़तरे में है या नहीं। ★★★ भारत का संविधान समाज की विविधता, एक नव स्वतन्त्र राष्ट्र की आकांक्षाओं तथा वास्तविक लोकतन्त्र के प्रति लोगों के संकल्प को प्रतिबिम्बित करता है। सरल भाषा में लिखी गयी यह संक्षिप्त रचना हम भारत के लोग हमारे संविधान के सार को दर्शाती है और सबसे महत्त्वपूर्ण बात यह है कि इसके निर्माता किस तरह क़ानून के शासन पर आधारित लोकतन्त्र की स्थापना करना चाहते थे, जहाँ सार्वजनिक मामलों का संचालन पूर्व-स्थापित सिद्धान्तों पर आधारित होना चाहिए। अब तक हमारे संविधान की कहानी, स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व को प्राथमिकता देते हुए बहुलतावादी समाज को समायोजित करने के लिए किये गये समझौतों के बारे में हिन्दी में बहुत कम किताबें लिखी गयी हैं। उस महान दस्तावेज़ के अर्थ को स्पष्ट रूप से सामने लाने और हमारे संस्थापक सिद्धान्तों को समझाने के लिए लेखक सुरभि करवा और तरुणाभ खेतान को बधाई। —जस्टिस एस. रवीन्द्र भट (पूर्व न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, भारत) ★★★ भारत का संविधान देश का उच्चतम क़ानून है जिसद् महत्ता इस बात में है कि वह शासन-प्रणाली का मूल सूत्र है जिसे 'हम भारत के लोगों' ने स्वयं को अर्पित किया है। इसका ज्ञान हर नागरिक को होना चाहिए। इसके लिए यह आवश्यक है कि संविधान सब भारतीय भाषाओं में उपलब्ध हो। मैं तरुणाभ व सुरभि को बधाई और धन्यवाद देता हूँ कि इन्होंने इस महाग्रन्थ को हिन्दी भाषा में देश की जनता को उपलब्ध कराया है। लेखकों ने बड़े अनूठे ढंग से कठिन व ज्वलन्त संवैधानिक विषयों को सरल बनाकर निराली प्रणाली में प्रस्तुत किया है। निश्चित ही, यह पुस्तक हिन्दीभाषी देशवासियों के लिए एक अद्भुत उपलब्धि साबित होगी। —जस्टिस अर्जन कुमार सीकरी (पूर्व न्यायाधीश, सर्वोच्च न्यायालय, भारत) ★★★ डॉ. अम्बेडकर ने आगाह किया था कि पूरे समाज में संवैधानिक नैतिकता विकसित करना हमारे लोकतान्त्रिक संविधान की सफलता के लिए ज़रूरी है। लेकिन भारत की कई भाषाओं में इस विषय पर आसान और सुलभ किताबों की कमी की वजह से बहुत सारे लोग हमारे संविधान को गहराई से समझ नहीं पाये हैं, इसके बावजूद यह उनके जीवन को विभिन्न तरीक़ों से प्रभावित करता है। यह सन्दर्भ इस पुस्तक को हिन्दी में भारतीय संविधान पर उपलब्ध गिनी-चुनी किताबों में एक महत्त्वपूर्ण और स्वागत-योग्य योगदान बनाता है। अपने विषय को बारीकी से समझाते हुए भी यह किताब पठनीय है।

9789369448791


Bhartiya Samvidhan

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