Kumaon ki lokgathaon mein rangmanchiyata
Joshi, Kulin Kumar
Kumaon ki lokgathaon mein rangmanchiyata - Gaziabad Udbhawana 2016 - 251 p.
मौखिक परंपरा में कंठानुकंठ विकसित होने वाली कुमाऊँ की लोकगाथाओं का आज भी अस्तित्व में बने रहना, जन सामान्य में इन लोकगाथाओं के सतत •प्रस्तुतीकरण का ही परिणाम माना जाना चाहिये। लोकगाथाओं में सतत प्रवाहित 'काल' के कारण इसे मंच पर प्रस्तुत करना किसी भी निर्देशक के लिये कठिन होता है। नयी तकनीकों, ज्ञान और संसाधनों को प्रस्तुति में जोड़ने से मौलिक स्वरुप नष्ट हो जाता है और मौलिक स्वरुप को बनाये रखने में आकर्षण को बनाये रखना कठिन होता है। लोकगाथाओं में प्रयुक्त संवाद और चारित्रिक विरोधाभास नाट्य-संसार सृजित करते हैं, घटनाओं का क्रम द्वन्द की उपस्थिति में नया आकार ग्रहण करता है और नाटकीयता की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण विशेषता कौतुहल का बने रहना है। मौखिक स्वरुप में इन लोकगाथाओं में न केवल एक नाटकीय कथानक बल्कि समग्र मानवीय इतिहास, जीवन-शैली उनकी परंपरायें, आचार-विचार, सामाजिक स्थिति और जीवन दर्शन, मान्यतायें, टकराव व संघर्ष अर्थात सब कुछ एक साथ ही समाहित रहता है। ज्यादातर लोकगाथायें चूंकि 'जागर' के रूप में ही प्रस्तुत होती हैं। लिहाजा जगरिया एक बेहतरीन अभिनेता दिखलायी देता है। किसी भी प्रकार के भावनाओं के प्रवाह से अलग तटस्थ दृष्टा की तरह घटने वाली घटनाओं और परिस्थितियों पर नजर रखता है और उपस्थित दर्शकों / श्रोताओं को प्रस्तुति की आवश्यकता के अनुरूप मोड़ लेता है। कुमाऊँ की लोकगाथायें मंचीय प्रस्तुतिकरण के सर्वथा उपयुक्त हैं और इन्हें नाट्य प्रस्तुति के रूप में भी मंचित और प्रदर्शित किया जा सकता है क्योंकि कथानक, कथ्य, चरित्रों की विविधता, द्वन्द, विभिन्न गाथाओं में वर्णित काल, वेशभूषा, अभिनय आदि रंगमंचीयता के अनेकानेक तत्व इन लोकगाथाओं में सहज रूप में विद्यमान है।
9789385428210
Kumaon folk
UK 793.31 JOS
Kumaon ki lokgathaon mein rangmanchiyata - Gaziabad Udbhawana 2016 - 251 p.
मौखिक परंपरा में कंठानुकंठ विकसित होने वाली कुमाऊँ की लोकगाथाओं का आज भी अस्तित्व में बने रहना, जन सामान्य में इन लोकगाथाओं के सतत •प्रस्तुतीकरण का ही परिणाम माना जाना चाहिये। लोकगाथाओं में सतत प्रवाहित 'काल' के कारण इसे मंच पर प्रस्तुत करना किसी भी निर्देशक के लिये कठिन होता है। नयी तकनीकों, ज्ञान और संसाधनों को प्रस्तुति में जोड़ने से मौलिक स्वरुप नष्ट हो जाता है और मौलिक स्वरुप को बनाये रखने में आकर्षण को बनाये रखना कठिन होता है। लोकगाथाओं में प्रयुक्त संवाद और चारित्रिक विरोधाभास नाट्य-संसार सृजित करते हैं, घटनाओं का क्रम द्वन्द की उपस्थिति में नया आकार ग्रहण करता है और नाटकीयता की दृष्टि से सबसे महत्वपूर्ण विशेषता कौतुहल का बने रहना है। मौखिक स्वरुप में इन लोकगाथाओं में न केवल एक नाटकीय कथानक बल्कि समग्र मानवीय इतिहास, जीवन-शैली उनकी परंपरायें, आचार-विचार, सामाजिक स्थिति और जीवन दर्शन, मान्यतायें, टकराव व संघर्ष अर्थात सब कुछ एक साथ ही समाहित रहता है। ज्यादातर लोकगाथायें चूंकि 'जागर' के रूप में ही प्रस्तुत होती हैं। लिहाजा जगरिया एक बेहतरीन अभिनेता दिखलायी देता है। किसी भी प्रकार के भावनाओं के प्रवाह से अलग तटस्थ दृष्टा की तरह घटने वाली घटनाओं और परिस्थितियों पर नजर रखता है और उपस्थित दर्शकों / श्रोताओं को प्रस्तुति की आवश्यकता के अनुरूप मोड़ लेता है। कुमाऊँ की लोकगाथायें मंचीय प्रस्तुतिकरण के सर्वथा उपयुक्त हैं और इन्हें नाट्य प्रस्तुति के रूप में भी मंचित और प्रदर्शित किया जा सकता है क्योंकि कथानक, कथ्य, चरित्रों की विविधता, द्वन्द, विभिन्न गाथाओं में वर्णित काल, वेशभूषा, अभिनय आदि रंगमंचीयता के अनेकानेक तत्व इन लोकगाथाओं में सहज रूप में विद्यमान है।
9789385428210
Kumaon folk
UK 793.31 JOS